मेरी पाठशाला
मैं शांत, बस झांक
मैं निर्मल, अनंत भान
अन्दर गहरा , बाहर कोरा
मैं जीयू , यही कोरा
अनंत अपार फिर भी थोड़ा !
मैं जागूँ , या सो जाऊँ
जब सोचूं , तो खो जाऊं
खुल ऐसे, साज के जैसे
जब निकलू, चमक बन जाऊँ
तेज भी, मंद भी ना
बस प्यारा, मन को सोखे
जब मिलूं, तो मिलकर ऐसे
उसी का जैसे, बस घुल जाऊँ
प्रेम देखा, चल चलूँ
आवेग झोंका, सह चलूँ
मैं पावन, मैं निर्मल
जो कठोर, कोमल बन जाऊँ
शब्द ऐसे, फूल हो जैसे
कोमल पंख, पखेरू ऐसे
वो उडे, तो अभिलाषा आए
कोशिश करूँ, मैं उड़ जाऊँ
शंख नाद, कोरु जो आज
बीता दिया, गया वो आज
आएगा क्या, सोच लूँ आज
मनन ऐसा, कर कर जाऊँ
एक पल, और हो एक विचार
दूजा क्या, जानूं एक औजार
मन क्या, एक कोरी पट्टी
सफ़ेद चाक, मैं भर जाऊँ
घोर घटा, जब छायेगी
देखते -२ , बारिश आएगी
अँधेरी -२ , चमके बिजली
वो तो भ्रम, समझता जाऊँ
लिखकर ऐसे, मैं सीखूं
सुनकर ऐसे, मैं सोचूं
जब तैयार, तब चलूँ
फिर प्रयास , करता जाऊँ
मैं तरंग, तीव्र प्रचंड
देख किनारा, उछल उछल
और आगे, तो कोरी धुल
चलता चलूँ , ना रुक जाऊँ
बन सहारा, कुछ देकर
लिया तो सब, अब कुछ देकर
करके ऐसे, त्याग में जैसे
प्रेम तो उसमें, बस तर जाऊँ.....